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आपको संजय सिंह याद हैं? कौन थे? कितनों को याद हैं? किसी को याद हैं भी, तो उसने संजय की यादों, उनकी प्रेरणा, उनकी नसीहत, उनके संदेश के बारे में या इसके हवाले क्या कर लिया?
चलिए, पहले संजय सिंह के बारे में बता देता हूं। संजय को उन लोगों ने मार डाला, जो पर्वत, वन या फिर प्रकृति प्रदत्त तमाम तरह की मुफ्त की संपदाओं को लूट अपनी तिजोरी भरते हैं। संजय सिंह, कैमूर के डीएफओ थे। उन्होंने इसे रोकने की कोशिश की। उनकी हत्या 15 फरवरी 2002 को हुई।
यह बस जिंदा संजय को लाश में तब्दील करने भर की तारीख है। मैं समझता हूं इसके बाद से भी संजय हर दिन मारे जा रहे हैं। दरअसल, जिस मकसद से उनकी कुर्बानी हुई, वह आज की तारीख और भी भयावह रूप में सामने है। यानी, लूटपाट चालू आहे। यह सब तब है, जबकि इस बारे में सरकार, अदालत, लोकसभा, विधानसभा, मीडिया …, यानी सबने अपने-अपने स्तर से इस लूट को रोकने की कोशिश की। तो क्या यह सब बस दिखावा है? या लुटेरे इन सबसे अधिक मजबूत हैं?
बहरहाल, संजय सिंह के पिता डा.घनश्याम एन.सिंह को सुनिए। उन्होंने अपने इकलौते बेटे संजय सिंह की कुर्बानी के हवाले आदर्श व्यवस्था के जिम्मेदारों से पूछा है कि क्या मेरे बेटे की कुर्बानी बेकार चली जाएगी? उन्होंने तमाम बड़े अफसरों को पत्र लिखा है। और इसी पत्र ने उक्त सवाल उभारे हैं। व्यवस्था को कठघरे में खड़ा किया है।
धनश्याम सिंह ने पत्र में लिखा है-बहुत पीड़ा और भारी मन से मैं इस सच्चाई को आपकी जानकारी में लाना और इस पर त्वरित कार्रवाई चाहता हूं, ताकि मेरे बेटे की कुर्बानी बेकार और पर्यावरण का क्षरण रोकने में बहुत देर न हो जाए। … रोहतास में जो कुछ चल रहा है वह मान्य कानून और डिवीजनल फारेस्ट अफसर संजय सिंह की नृशंस हत्या के बाद एक सुओ-मोटो नोटिस के आधार पर, सुप्रीम कोर्ट के दिए गए निर्देश को ताक पर रख देना है। रात के समय किसी अचानक छापे के दौरान ये चीजें सामने देखी जा सकती हैैं। कैसे स्टोन माफिया लूट का अपना राज और विस्तारित करते जा रहे हैं और स्थानीय प्रशासन कान में तेल डाले और आंखें मूंदे पड़ा है?
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