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खिचड़ी+स्कूल+बच्चे= …?

फंटूश
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चलिए, मेघपुर बाड़ा मध्य विद्यालय के बच्चे बच गए। नहीं तो धर्मासती गंडामन (सारण) के बच्चों की तरह उनका भी स्मारक बन ही जाता।

दरअसल, हम अपनी याद को फौरन पत्थर या कंक्रीट की शक्ल देने के महारथी हैं। तत्काल वह जड़वत स्वरूप दे डालते हैं, जो कभी परेशान ही नहीं करे। मुझे लगता है कि अपने महान भारत जितना स्मारक शायद ही कहीं होगा। हां, हम इन दफन यादों के बारे में यह दावा जरूर करते हैं कि ये तो हमारे जेहन में हैं। हमारी ताकत हैं, हमारी प्रेरणा हैं। हमने इनकी याद की तारीख भी तय कर रखी है। अगर स्मारक किसी आदमी का है, तो हम साल में उसे दो बार याद करते हैं। एक उसके जन्मदिन पर दूसरे पुण्यतिथि पर। सप्ताह, पखवारा, वार्षिकोत्सव, स्वर्ण जयंती, हीरक जयंती …, यादों की बस औपचारिकता निभाना कोई हमसे सीखे।  मैं समझता हूं कि यह सब किसी व्यक्ति या मसले को बड़ी सहूलियत और तार्किक अदा में भुला देने की चालाकी भर है।

माफ करेंगे, थोड़ा भटक गया था। बात, बच्चों की चल रही थी। धर्मासती गंडामन कितनों को याद है? अरे, याद रहता, तो मेघपुर बाड़ा होता? दूसरी बात है कि मेघपुर में बच्चे बच गए। थैंक गॉड। और क्या यह सब पहला और आखिरी है?

धर्मासती गंडामन गांव के स्कूल में जहरीला मिड डे मील खाने से 23 स्कूली बच्चे मर गए थे। यहां सरकार ने स्मारक बनवा दिया है। यह दुनिया में अपनी तरह का इकलौता स्मारक है। यह बताते रहने के लिए कि सिस्टम को एक्सपोज करने में तेईस मासूम शहीद हुए। कितनों ने इनकी लाज रखी है? तब सरकार ने जो-जो कहा था, मुझे लगता है वह सब अब उसको याद भी नहीं होगा। मैं गलत हूं? यह तो और भी नहीं कि सरकार ने जो-जो कहा था, उसमें कितना पूरा हुआ? कोई बताएगा?

मेघपुर बाड़ा सीतामढ़ी के सुरसंड प्रखंड में है। यहां मिड डे मील खाने के बाद 54 बच्चे बीमार हो गए। शुक्र है कि इलाज के बाद सभी घर पहुंच गए हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि ये सभी भरपूर उम्र जिएंगे। यह कामना इसलिए भी है कि अपने यहां खासकर गरीबों के बच्चों को मारने के ढेर सारे इंतजाम हैं। मुजफ्फरपुर में देखिए। एक अनाम बीमारी कितनी तेजी से और पिछले कितने सालों से किश्तों में बच्चों को मजे में मार रही है। और हम इसकी वजह तक पता नहीं कर पाए हैं। 

खैर, सीतामढ़ी की डीएम डा.प्रतिमा ने स्कूल में बनी खिचड़ी में मरा सांप होने की बात को खारिज किया है। वे कह रहीं हैं कि बच्चे बस डर गए थे। शायद डर से उल्टी भी होती है। प्रधानाध्यापक मो.नासीर की माने तो खिचड़ी में सांप नहीं था। कपड़ा था। गांव वाले कह रहे हैं कि सांप को फेंक कपड़ा रख दिया गया था।

ऐसे मौकों या मुद्दों पर बहस हमारे खून में है। एक जो बोलेगा, दूसरा उसको नहीं स्वीकारेगा। फिर सिस्टम तो मान कर चलता है कि उससे गलती हो ही नहीं सकती है। कुछ तो हुआ ही होगा, जिसने बच्चों को बीमार बनाया। बस डर की वजह से इतना सब होगा?

मैं उस दिन शिक्षा मंत्री वृशिण पटेल को सुन रहा था। वे विधानसभा में बोल रहे थे-मिड डे मील का बेहतर इंतजाम हो रहा है। लेकिन कुछ लोग इस व्यवस्था को खत्म करा देने की मंशा से भोजन में कभी काकरोच (तिलचट्टा), तो कभी छिपकली डाल दे रहे हैं। तरह-तरह की साजिश कर रहे हैं। गजब।

अभी सरकार ने मिड डे मील के लिए पैसा बढ़ाया है। कितना, देखिए। अब कक्षा एक से पांच तक के प्रति बच्चे को 3.59 रुपया और कक्षा छह से आठ तक के प्रति बच्चे पर 5.38 रुपया खर्च होगा। पहले कक्षा एक से पांच तक प्रति बच्चा पर 3.35 रुपया और कक्षा छह से आठ तक प्रति बच्चा पर 5 रुपये मिलता था। यानी, 24 पैसे व 38 पैसे की वृद्धि। बेजोड़। यह पैसा चावल छोड़कर सब्जी, तेल, मसाला व जलावन आदि पर खर्च के लिए है। सभी 73 हजार प्रारंभिक विद्यालयों में मिड डे मील लागू है। सरकार दावा करती है-दो करोड़ से अधिक बच्चे लाभान्वित हैं। चालू वर्ष में मिड डे मील का बजट 1800 करोड़ रुपये है।

मुझे याद है धर्मासती गंडामन कांड के दौरान तत्कालीन शिक्षा मंत्री पीके शाही ने कहा था-दो करोड़ में बच्चों में से 25 फीसद को छोड़ भी दें तो शेष बच्चों को भोजन उपलब्ध कराने के लिए कोई एजेंसी नहीं है। प्रधान शिक्षकों और विद्यालय शिक्षा समितियों द्वारा ही भोजन प्रबंधन कराया जाता है। जहां शिक्षा समिति दिलचस्पी लेती हैं, वहां ठीक ढंग से बच्चों को भोजन मिलता है और जहां पर शिक्षक व समिति के सदस्य रुचि नहीं लेते हैं वहां भोजन का प्रबंधन ठीक से नहीं है। स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार भी है। इस स्थिति में कुछ भी बदला है क्या? बच्चों को जहां तक संभव हो सके, बेहतर भोजन (मुनासिब शब्द खिचड़ी) उपलब्ध कराना सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी है? मेघपुर बाड़ा तो होगा ही।

मेरी राय में बेशक, सरकार के पास दुरुस्त व्यवस्था के बाधक तत्वों के खिलाफ कार्रवाई का रिकॉर्ड है। लेकिन यह भी सही बात है कि यह शिकायतों की तुलना में कुछ भी नहीं है। यहां नॉनवेज खिचड़ी कबूल सी ली गई बात है। स्कूलों में जो मिलना है, जो मीनू है …, अहा मुंह में पानी आ जाता है। एगमार्क (ब्रांडेड) युक्त मसाला, आयोडीन नमक, खाद्य तेल (रिफाइन तेल/शुद्ध सरसों तेल), ताजी सब्जियां, सलाद में खीरा, गाजर, मूली, टमाटर, प्याज, नींबू, चावल, दाल, सब्जी, छोला/राजमा व पुलाव, आलू-सोयाबीन, चावल, खिचड़ी, चोखा, कढ़ी, चावल, दाल, पुलाव …, अहा हम कितने चालाक हैं जी! हमने शिक्षा के मंदिर को कितना सुंदर बना दिया है? गणितीय अंदाज में इसका गुणसूत्र बना दिया है-खिचड़ी+स्कूल+बच्चे= …? कोई बताएगा कि इस रिक्त स्थान में कौन सा शब्द फिट किया जाए?

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