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मैं तय नहीं कर पा रहा हूं कि आखिर अब क्या होगा? बच्चों का वास्ता तक बेकार गया। विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी सदन में शांति के लिए बच्चे देख रहे हैं का हवाला दे-देकर थक गए। कोई असर नहीं। बच्चों को देखकर भी बड़े नहीं मान रहे हैं। बच्चे, बड़ों की लीला देख आश्चर्यचकित हैं।
मैं भी हूं। अबकी बार मुझे सदन में कई अनुभव हुए हैं। ये नए हैं। इसे ज्ञान कहना ज्यादा मुनासिब है। मेरा पहला ज्ञान यह कहता है कि नेता, कोरस भी गाते हैं। हालांकि ज्यादातर मामलों में यह हो-हो-होऽऽ से आगे नहीं बढ़ता है। कभी-कभी इसमें हुआ-हुआऽऽऽ भी शामिल रहता है। यह सबकुछ बड़ा दिलचस्प है। शायद इसलिए होता है, चूंकि नारे चूक जाते हैं। मुद्दा किनारे पड़ जाता है। अपने प्रदेश में वैसे भी राजनीति का स्वघोषित स्वरूप है-बस विरोध के लिए विरोध।
मेरी ज्ञान यात्रा आगे बढ़ती है। यह नया नजारा है। नई जानकारी है। नेता प्रतिपक्ष नंदकिशोर यादव, पर्यटन मंत्री जावेद इकबाल अंसारी को समझा रहे हैं-सरकार, सरकार होती है। मंत्री, सरकार होता है। मंत्रिमंडल की सामूहिक जिम्मेदारी होती है। जावेद साहब ने कांवरियों की सुविधा के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में यह भी कह दिया था कि वैसे तो श्रावणी मेला, भू-राजस्व विभाग का मसला है। उन्होंने पूरा जवाब भी दिया।
खैर, मेरी राय में नंदकिशोर यादव ने बिल्कुल वाजिब फरमाया है। सही में सरकार, सरकार होती है और विपक्ष, विपक्ष होता है। दोनों की अपनी जुबान होती है, भूमिका है, चाल है, अंदाज है, काम है …, सबकुछ अपना-अपना है। सेट फार्मेट है। जो इसमें आता है, फिट हो जाता है; उसी का हो जाता है। वह बस सरकार या विपक्ष होता है। मुझे एक और खासियत (ज्ञान) दिखी। सरकार चलाने वाले सरकार से बाहर होते ही धुर विपक्षी हो जाते हैं। इसी तरह जब विपक्षी सरकार में आते हैं, तो हंड्रेड परसेंट सरकार हो जाते हैं। इसमें कोई बेईमानी नहीं होती है। पूरी ईमानदारी है।
संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली से जुड़ा मेरा नया ज्ञान यह भी कहता है कि सरकार, अव्वल तो किसी काम की समयसीमा बताने से हिचकती है और जो बताती है, उसमें काम पूरा नहीं होता है। सरकार का आश्वासन या भरोसा देने की अपनी अदा है। सुनिए, एक मंत्री जी एक सवाल का जवाब दे रहे हैं-डीएम से प्रतिवेदन मंगवा लेते हैं। इसकी अनिवार्यता व व्यवहार्यता की समीक्षा करेंगे। अगले वित्तीय वर्ष में निधि की उपलब्धता के आधार पर प्राथमिकता से विचार करेंगे। मेरी राय में किसी मामले को टालने के लिए इससे सुंदर लाइन नहीं हो सकती है। अध्यक्ष जी कहते हैं-गंभीरता से देखवा लीजिए। मंत्री-जी, देखवा लेते हैं। इस लाइन की बारी तब आती है, जब कोई मामला फंसता हुआ दिखता है।
जरा, इस ज्ञान को भी देखिए। मैंने देखा कि उन लोगों ने भी वैसे ढेर सारे सवालों को सरकार से पूछा है, सरकार की फजीहत की है, जिसके लिए हाल तक सरकार में रहते वे खुद जिम्मेदार रहे हैं। एक सवाल संजय सिंह टाइगर का था। वे मसाढ़ (भोजपुर) गांव में वाणासुर पोखरा को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की मांग कर रहे थे। सरकार ने कहा-हम डीएम से रिपोर्ट मंगा रहे हैं। अब विधानसभा उपाध्यक्ष अमरेंद्र प्रताप सिंह को सुनिए -2003 में मैंने यही सवाल किया था। तब सरकार का ठीक यही जवाब था। तब भाजपा सरकार में थी। ऐसे ढेर सारे नमूने हैं। नए ज्ञान के रूप में यह नमूना भी देखिए-राजधानी पटना की जलापूर्ति योजना 2012 में बनी। काम मार्च 2014 में पूरा होना था। बहुत काम बाकी है। हद है।
सबसे बड़ा ज्ञान यह है कि सत्ता पक्ष भी वेल में आता है। हंगामे के जवाब हंगामा होता है। यह भी कि माननीय शेरो-शायरी खूब जानते हैं। मैंने विधानमंडल को मुद्दा बनाने व बिगाड़ देने के केंद्र के रूप में भी देखा है। मसाढ़ को पर्यटन स्थल बनाने की बात उठी, तो राजद के भाई वीरेंद्र ने इसे गांजा तस्करों का अड्डा बता दिया। एक और ज्ञान-सदन में शायद ही कोई बात मुकाम तक पहुंचती है। ओपी धनखड़ (भाजपा नेता) के विवादास्पद बयान पर तीन दिन हंगामा हुआ। इसे बिहार की बेटियों का घोर अपमान बताया गया। चौथे-पांचवें दिन …, यह मुद्दा हवा क्यों हुआ? सम्मान लौट गया क्या?
यह सब क्या है? क्यों है? मैं तो यही जानता हूं कि सदन, जनता के आकांक्षाओं और इसकी पूर्ति का वाहक है। विधानमंडल के दोनों सदनों में जो हो रहा है, इसमें वाकई वह (सदन) अपने अस्तित्व का औचित्य या सार्थकता साबित कर पा रहा है? कौन कसूरवार है? सत्ता पक्ष की माने तो विपक्ष और विपक्ष की माने तो सत्ता पक्ष। दोषी जो हो, यह सवाल बड़ी संजीदगी से उभरा है कि वाकई नेता, समाज का पथ प्रदर्शक होता है? नेता, नई पीढ़ी को क्या सिखा रहे हैं? यह मुनासिब है?
नेताजी, बच्चे आपकी लीला को देख रहे हैं। बच्चे देख रहे हैं कि बिजली की स्विच की तरह कैसे आप ऑन- ऑफ होते हैं? बच्चे देख रहे हैं कि कैसे आप एक सेकेंड में लड़ते हैं, और आठवें-दसवें सेकेंड में कैसे गलबहियां करते हैं? कैसे जन गण मन की राष्ट्रीय धुन या बस शोक प्रकाश तक आप शांत रहते हैं और तत्काल स्टार्ट हो जाते हैं? बच्चे आपकी तमाम अदाएं देख हैं, हंस रहे हैं।
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