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अपनी जांच, अपनी क्लीनचिट

फंटूश
फंटूश
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अब मैंने भी मान लिया है कि नेता, सबकुछ कर सकता है। वह जांच शुरू होने से पहले जांच कर सकता है। फौरन जांच रिपोर्ट दे सकता है। जांच से पहले क्लीनचिट देना उसका जन्मसिद्ध अधिकार है।

मैं देख रहा हूं-दवा घोटाले के संदर्भ में नेताओं के ऐसे कई गुण एकसाथ खुलेआम हैं। मेरी राय में अपनी सीबीआइ, विजिलेंस ब्यूरो या ऐसी एजेंसियां अपने नेताओं से जांच और क्लीनचिट के बारे में बहुत कुछ सीख सकती हैं। एजेंसियां, नेताओं के इस फटाफट तरीके से खुद को काहिली की बदनामी से मुक्त कर सकती हैं।

अभी नेताओं की दो जमात है। एक, जांच करके रिपोर्ट दे रहा है। दूसरा, क्लीनचिट बांट रहा है। यह काम भी नेताओं की आदत के अनुरूप है। यह कामयाब नेतागिरी की पहली शर्त है कि एक नेता हां बोले, तो दूसरे को ना कहना ही है। हां और ना पक्ष, सफल संसदीय लोकतंत्र की बुनियादी शर्त है। और हमने तो दुनिया को लोकतंत्र की अवधारणा से वाकिफ कराया है। आजादी के साढ़े छह दशक के दौरान हम इस मोर्चे पर बेहद प्रबुद्ध हुए हैं। मैं समझता हूं कि जो हो रहा है, वह इसी प्रबुद्धता का प्रकटीकरण है। जो दिलचस्प सीन है, उसका इकलौता निहितार्थ यही है कि नेता, हर मुद्दे को हर हाल में बस अपने फायदे में इस्तेमाल करता है। इस दौरान अगर पब्लिक भ्रम को जीती है, तो यह उसका प्रॉब्लम है। नेता, हमेशा क्लियरकट होता है। 

नेता का एक और गुण देखिए। नेता, पत्र लिखता है। नेता का पत्र नेता के लिए ही होता है। नेता का पत्र पब्लिक की तरह नहीं होता है कि जिसको लिखा गया, वही पढ़ेगा। नेता की तरह उसका पत्र भी राष्ट्रीय संपत्ति होता है। नेता के पत्र को पूरी दुनिया पढ़ती है। पत्र युद्ध, राजनीति का बौद्धिक मोर्चा माना जाता है।

मैं, उस दिन लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण मंत्री डा.महाचंद्र सिंह को सुन रहा था। वे केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा को सलाह दे रहे थे कि शौचालय पर राजनीति नहीं करें। हद है। मैं तय नहीं कर पा रहा हूं कि आखिर किस मसले पर राजनीति नहीं हो रही है? बाढ़ राहत से लेकर, पानी, बिजली, सड़क, धान खरीद …, राजनीति को कोई मुद्दा बचा भी है क्या? यहां तो विजय कुमार चौधरी (जल संसाधन मंत्री) को सुशील कुमार मोदी (नेता, भाजपा विधानमंडल दल) पढ़ा रहे हैं। पहले मोदी जी की पोस्ट आती है। फेसबुक पर। चौधरी जी इसको पढ़ते हैं। फिर अपनी पोस्ट करते हैं। उनकी एक-एक बात को काटते हैं। यह चौधरी जी की नई ड्यूटी है। दौर फेसबुक वार का है। यानी, किसी भी मोर्चे पर नेता, दूसरे नेता को छोड़ नहीं रहा है।

इसके दायरे में मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी, उनकी बातों को भी ले आया गया है। जब-तब उनकी बातों पर हंगामा हो जा रहा है। ऐसा क्यों हो रहा है? नेता प्रतिपक्ष नंदकिशोर यादव का जवाब सुनिए-मुख्यमंत्री, फ्रस्ट्रेशन में हैं। लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचने के लिए अक्सर अनाप-शनाप बोल देते हैं। मांझी इसे नकारते हैं। कहते हैं-उनकी बातें तोड़-मरोड़ कर पेश की जाती हैं। तय करते रहिए कि कौन, कितना सही है? नेता लीला चालू है। विधानसभा चुनाव सामने दिखने लगा है। यह सब अभी और बढ़ेगा। पता नहीं इसका चरम क्या होगा? कोई बताएगा?

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