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मैंने कुछ ही घंटे पहले एक नई बात जानी है। यह बड़ा ज्ञान है। आपसे शेयर करता हूं। ख्यात मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य, कुशवाहा थे। कुशवाहा यानी कोईरी। राष्ट्रवादी कुशवाहा परिषद का शोध यह भी कहता है कि चंद्रगुप्त मौर्य का राज्यारोहण नौ दिसंबर को हुआ था। संगठन इस दिन राज्यारोहण दिवस मनाएगा।
चलिए, नौ दिसम्बर में अभी देर है। पता नहीं उस दिन क्या-क्या होगा? तब तक मार्केट में ऐसे कुछ और ज्ञान लांच हो सकते हैं। चुनाव दिखने लगा है न! एक ज्ञान पर तीन-चार फ्री का ऑफर आ सकता है। फिलहाल मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी, उनकी पीड़ा को सुनिए। उन्होंने कहा है-मुझे मधुबनी के देवी मां के मंदिर में ले जाया गया। मैंने बड़े ध्यान से पूजा की। बाद में मुझे पता चला कि मेरे पूजा करने के बाद मंदिर और मूर्ति को शुद्ध किया गया। उसे धोया गया। … मेरा कसूर यही है न कि मैं महादलित जमात का हूं? हद है। शर्म है। हम किस युग में जी रहे हैं?
मैं समझता हूं ये या ऐसे तमाम तरह के सवाल, जो आदमी और उसके सिस्टम के अस्तित्व के औचित्य पर अंगुली उठाते हैं, यूं ही नहीं हैं। कौन जिम्मेदार है? कोई है भी या नहीं? आदमी को हो क्या गया है? और सिस्टम …, आदर्श व्यवस्था की जिम्मेदारी संभाले लोग? एक खबर पढ़ रहा था-शुभंकरपुर (मुजफ्फरपुर) में पंचायत ने दुष्कर्म पीडि़त नाबालिग बच्ची के घर वालों को फरमान सुनाया कि दुष्कर्म करने वाले से दो लाख रुपए लेकर पीडि़ता का गर्भपात करा लो। अक्सर ऐसे फैसले आ रहे हैं। पंच, परमेश्वर कहलाएगा? पंचों का ही नहीं, बल्कि संगठन चाहे इंजीनियर-डॉक्टर का हो, या पुलिस- शिक्षकों का …, उसे बस अपने अधिकार याद रहते हैं। कर्तव्य?
मैं देख रहा हूं-नवरात्र शुरू है। सभी मां दुर्गा की आराधना में डूबे हैं। मातृ शक्ति, नारी शक्ति की पूजा। कुंवारी पूजन भी होने वाला है। इधर तीन- साढ़े तीन साल की बच्चियों से बलात्कार भी हो रहा है। मां, डायन बताकर मारी जा रही है। प्रताडि़त की जा रही है। हद है। शर्म है।
उस दिन स्वास्थ्य मंत्री रामधनी सिंह को सुन रहा था-अरे, मरने वाले तो मरेंगे ही। जीवन और मौत ऊपर वाला लिखता है। जिसकी आयु पूरी हो जाती है उसे कोई नहीं रोक सकता है। उनसे एनएमसीएच (नालंदा मेडिकल कॉलेज अस्पताल, पटना) में तीन नवजात की मौत के बारे में पूछा गया था। यही बात सामने आई थी कि ये बच्चे ऑक्सीजन की कमी से मर गए। इससे ठीक पहले पीएमसीएच (पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल) में ऑक्सीजन के बिना एक बच्चे की मौत हो गई थी।
बहरहाल, मैं समझता हूं कि ऑक्सीजन की जरूरत सिर्फ पीएमसीएच और एनएमसीएच को ही नहीं है। हर आदमी को है। पूरे सिस्टम को है। समाज को है। उन लोगों को ज्यादा है, जिनके पास सिस्टम व समाज को बेहतर तरीके से चलाने की जवाबदेही है। मैं विज्ञान में कमजोर रहा हूं। मगर इतना जरूर जानता हूं कि दिमाग या शरीर में ऑक्सीजन की कमी आदमी को आदमी नहीं रहने देती है। आदमी को मार देती है। बहुत कुछ मरा हुआ है। बहुत कुछ गड़बड़ाया हुआ है। दरकार ए ऑक्सीजन, नया ज्ञान है। यहां ऑक्सीजन, बस प्रतीक है।
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