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बातें, जो समझ न आएं

फंटूश
फंटूश
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मुझे खूब दिखने वाली कुछ बातें बिल्कुल समझ में नहीं आती हैं। बहुत कोशिश की। जान नहीं पाया। प्लीज, मेरी मदद करेंगे?

मैं नहीं जानता कि श्रद्धांजलि के लिए दो मिनट मौन के दौरान खासकर नेता आखिर सोचता क्या है? नेता, वाकई भगवान या खुदा से देश व समाज की सुख-समृद्धि की डिमांड करता है, जैसा कि वह कहता है? मरने के बाद आदमी महान हो जाता है? हादसे के तत्काल बाद हेल्पलाइन नम्बर से पहले या बिल्कुल साथ-साथ यह खबर क्यों फ्लैश होती है कि मृतक के परिजनों को पांच-पांच लाख और घायलों को पचास-पचास हजार रुपये दिए जाएंगे? हर तीन-चार महीने पर यह खबर क्यों छपती है कि विश्वविद्यालय शिक्षकों के वेतन लिए इतने करोड़ रुपये जारी हुए? सड़कों पर घोर अराजकता के जिम्मेदार, बिहार रेजीमेंटल सेंटर (दानापुर) को पार करते हुए अचानक अनुशासित कैसे हो जाते हैं?

ऐसी ढेर सारी बातें हैं। ढेर सारे सवाल हैं। इनकी चर्चा फिर कभी। फिलहाल इन्हीं तर्ज की कुछ और बातों को देखिए, जानिए। मेरी राय में इनमें से अधिकांश में इन सवालों के जवाब भी हैं। दरअसल, यह उस आदमी की प्रकृति है, उसका स्वभाव है, जिसके पास सिस्टम को चलाने का जिम्मा है। कुछ बातें बस यह दिखाने के लिए कही जा रही हैं कि कुछ हो रहा है। इसके लिए कुछ करने की जरूरत नहीं होती है। सिर्फ दो-चार शब्द बोल देना है। ज्यादा हुआ, तो पांच-सात लाइन लिख देनी है। दीपावली आई, तो यह निर्देश भी आ गया कि रात दस बजे के बाद पटाखे नहीं छूटेंगे। मैंने इस बार भी देखा कि दस बजे के बाद पटाखे जमकर छूटे। मैं तो यह मानता हूं कि दस बजे के बाद पटाखे और जोर-जोर से छूटने शुरू हुए। अभी छठ पूजा का दौर है। साहब बहादुर का पुराना ऑर्डर नए कागज पर निकाला हुआ है-निजी नाव नहीं चलेंगे। छठ के लिए ऐसी ढेर सारी सरकारी बातें हैं, जो फिर पूरी नहीं होंगी।

एक मसला पॉलिथीन का है। सरकार को भी याद नहीं होगा कि उसने इसको रोकने के लिए कितनी दफा आदेश निकाला है? तम्बाकू नियंत्रण …, बाप रे बाप, इसके लिए तो रिकॉर्ड आदेश है। मीटिंग होती है। सेमिनार होता है। भाई लोग विदेश आते-जाते रहते हैं। स्कूल के पास नहीं बिकेगा। सार्वजनिक स्थान पर धुआं उड़ाया तो इतना जुर्माना, यहां पर इतना, वहां पर उतना …! हां, अभी तक बाथरूम के लिए रेट तय नहीं हुआ है। हो ही जाएगा।

मैं बचपन से पढ़ता-सुनता आ रहा हूं कि कचरा फैलाना अपराध है। इसके लिए सजा है। जुर्माना है। लेकिन मैंने आज तक इस अपराध का एक भी अपराधी नहीं देखा है। आपने देखा है?

यह थोड़ी पुरानी बात है। इतनी भी नहीं कि लोग भूल जाएं। नीतीश कुमार मुख्यमंत्री थे। एक समारोह में थे। आइडियाबाजों का जुटान था। आइडिया थोक भाव में गिर रहा था। नीतीश जी थोड़े असहज दिखे। उनके भाषण का आशय था कि आइडिया की खेती बंद हो। जमीन पर काम हो।

मैं नहीं जानता कि अपना आवास बोर्ड राजधानी में पच्चीस हजार से अधिक फ्लैट किस जनम तक बना पाएगा? लेकिन लीज का समय तय कर रहा है। गजब। मैं सिस्टम चलाने वालों की आंखों से देख रहा हूं-मेट्रो चलने को है। मरीन ड्राइव बस बनने ही वाला है। पटना पेरिस हो रहा है। कचरा से बिजली बनने लगी है। सेटेलाइट से इंदिरा आवास में गड़बड़ी पकड़ी जानी है। यहां अंडरपास बनेगा, इधर से फ्लाईओवर निकलेगा, उधर एलिवेटेड रोड है। यहां मोर नाचेगा, वहां मछलियां फुदकने वाली हैं। जीपीएस (ग्लोबल पोजिशिनिंग सिस्टम), पीडीएस (जन वितरण प्रणाली) को दुरुस्त कर रहा है …, बाप रे कितना गिनाएं? आइडियाबाज की हवाबाजी कब तक चलेगी?

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