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मुहावरा

फंटूश
फंटूश
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चलिए, हाथ काटने पर मचा बवाल थम गया। यहां तक नहीं पहुंचा है कि इस मुहावरे को रचा किसने? आखिर तब, रचयिता के सामने कौन सी परिस्थिति थी? वह इसके लिए किस बात से प्रेरित या प्रभावित हुआ? क्या वह भी किसी राज्य का मुख्यमंत्री था, जो अपने कारिंदों से इसलिए बहुत नाखुश था कि वे ईमानदारी से अपना काम नहीं करते हैं? उसने ऐसे लोगों के हाथ को ही काटने की बात क्यों कही? वह आंख भी फोड़ सकता था। नाक काटने या कान को दांत से कुतरने की बात भी कह सकता था?

मेरी राय में ऐसे ढेर सारे सवाल हैं। अपना देश में सवाल-जवाब की बाकायदा परंपरा रही है। बहस, उसको लेकर तर्क, तर्क पर तर्क …, हमारे खून में है। हम इसके लिए बड़ी फुर्सत में हैं। मैं समझता हूं किसी भी दिन हाथ काटने का बवाल अपने इन मूल सवालों तक पहुंच जाएगा। इस पर मानवाधिकारवादियों की नजर पड़ सकती है। वे इस बात पर भी शोध कर सकते हैं कि तब तालिबान किस रूप में था? हाथ काटने के रचयिता के लिए सिर कलम करने वाला मुहावरा मार्केट में आ सकता है।

अपने मुख्यमंत्री जी ने गरीबों का इलाज नहीं करने वाले डॉक्टरों और गरीबों का काम नहीं करने वाले अफसरों का हाथ काट लेने की बात कही। मैं देख रहा हूं कि पहली बार किसी मुहावरे पर इतना बवाल मचा। हिन्दी और इसका कोई मुहावरा इतनी हाईप पाया है। यह इस बात की भी नसीहत है कि नेता को सुनने से पहले हिन्दी का अच्छा ज्ञान भी होना चाहिए। मुख्यमंत्री ने कहा है कि उन्होंने हाथ काटने की बात मुहावरे के रूप में कही है, जिसका अर्थ होता है-अधिकार सीमित करना, अधिकार छीन लेना। इसको नहीं समझने वाले लोग नासमझ हैं।

अपने यहां हाथ से जुड़े कई मुहावरे हैं। इनमें कुछ खास इस प्रकार हैं। यह वाला खासकर नेताओं के लिए है-दिल मिले न मिले हाथ मिलाते रहिए। हाथ कंगन को आरसी क्या? हाथ की सफाई। रंगे हाथों पकड़ा जाना। हाथों में खुजली। इसमें दांए  और बांए हाथ की खुजली के अलग-अलग अर्थ हैं। हमने अपने दूसरे अंगों पर आधारित कहावत, मुहावरा या लोकोक्ति गढ़ रखे हैं। अब जिसको जो समझाना है, समझता रहे।

मेरी माने तो समय के हिसाब से कुछ नए मुहावरे गढऩे होंगे। ढेर सारे नए थीम सामने आए हैं। कुछ में संशोधन करना होगा। बहुत सारे मुहावरे एक्सपायर कर गए हैं। सरकार के लिए मुहावरा बनाना होगा। नेता, अफसर, डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक, पुलिस …, सभी मुहावरों की दरकार रखते हैं।

और अंत में …

मेरे एक सहयोगी ने पूछा-दिल और जिगर में क्या अंतर है? दूसरे ने कहा-साहित्यिक अंतर है। इस्तेमाल का अंतर है। जिगर, मर्दानगी का प्रतीक माना जाता है। दिल का इस्तेमाल कोमल भाव के रूप में होता है। तीसरे को आपत्ति रही-दोनों तो शरीर का एक ही अंग है न! पहले वाला ने कहा-फिर गाने के ये बोल क्यों हैं कि दिल-जिगर, दोनों घायल हुए …! समझे।

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